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वह जो उजालों से परे है



      वह एक पुराना, टूटा-फूटा और बहुत ही छोटा सा मकान था, जिसमें न हवा को आने की इजाज़त थी, न रोशनी को। खिड़कियों और रोशनदानों की गिनती उंगलियों पर की जा सकती थी, और वो भी शायद महज़ इसीलिए थे कि मकान की शकल मुकम्मल हो सके। उस जगह का सन्नाटा इस बात की गवाही देता था कि इंसानी कदमों ने वहां अरसे से दस्तक नहीं दी थी। 

वक्त की गर्द से ढके मकानों में अक्सर एक अजीब सी खामोशी अपना डेरा डाल लेती है , एक ऐसी खामोशी जो बोलती नहीं, लेकिन महसूस होती है। वह मकान भी कुछ वैसा ही था। जैसे किसी तन्हा रूह ने ख़ुद को दीवारों में समेट लिया हो।


     रात गहराई हुई थी। आसमान पर चाँद अपनी शफ़्फाक, दूधिया रौशनी में नहाया हुआ था। यह वो वक्त था जब दुनिया अपने ग़मों को कुछ देर के लिए ताख पर रखकर ख्वाबों की आगोश में चली जाती है। मगर, आज की रात कुछ और ही थी। कोई था, जो इस सन्नाटे को चुपके से चीरता हुआ, इस वीराने में दाख़िल हुआ था  जैसे अंधेरे में उजाले की एक महीन सी रेखा।

     बरसों से वीरान उस मकान में उस रात फिर से एक हलचल हुई , कुछ धीमी-धीमी सी आवाज़ें, जो मकान के पिछवाड़े मौजूद एक पुराने कुएँ से आ रही थीं। पहले तो वो आवाज़ें फुसफुसाहट जैसी थीं, फिर जैसे-जैसे पल बीते, वो साफ़ और तेज़ होने लगीं।

और फिर... कुएँ के काले अंधेरे से दो नाज़ुक, चमकीले हाथ उभरे , जैसे कोई अनदेखा सौंदर्य अंधेरे से निकलकर रौशनी की ओर बढ़ रहा हो। उन हाथों की मदद से कोई ऊपर चढ़ने की कोशिश कर रहा था। फिर धीरे-धीरे एक जोड़ी हसीन आँखें, गहराई और जिज्ञासा से भरी हुई, कुएँ से बाहर निकलीं और चारों ओर का मुआयना करने लगीं। ये वही जगह थी, वह जानती थी ,  मगर फिर भी, एहतियात लाज़िमी था।

जब पूरी तरह आश्वस्त हो गई, तब वह आकृति पूरे बदन के साथ कुएँ से बाहर आ गई। चाँदनी जैसी सफेद रेशमी पोशाक में लिपटी, वह कोई आम लड़की नहीं थी  वह एक जिन्नजादी थी। उसका नाम मैमून था  जिन्नों के बादशाह दिउमर्स की इकलौती बेटी।

उसका चेहरा चाँद से भी ज़ियादा रोशन और बेदाग़ था। उसकी बड़ी-बड़ी काली गज़ल जैसी आँखों में शरारत और रहस्य दोनों झलकते थे। गुलाब की पंखुड़ियों जैसे होंठों पर मासूमियत भरी मुस्कान खेल रही थी, और उसकी सुनहरी, लहराती ज़ुल्फ़ें हवा से अठखेलियाँ करती हुई उसके चेहरे को छू रही थीं। वह इतनी हसीन थी कि किसी भी नौजवान का दिल बेबस हो जाए।

पर यह कुआँ कोई आम कुआँ नहीं था। ज़ाहिर में देखने पर लोग यही समझते कि यह पानी निकालने के लिए बनाया गया है, मगर हक़ीक़त इससे बहुत जुदा थी। यह कुआँ दो दुनियाओं के बीच का एक रास्ता था , जिन्नों और परियों की रहस्यमयी दुनिया को इंसानों की दुनिया से जोड़ने वाला एक ख़ुफ़िया दरवाज़ा। यह राज़ अभी तक इंसानी समझ और फितरत से कोसों दूर था।

     मैमून रोज़ इसी रास्ते से इस दुनिया में आया करती थी। क्या सिर्फ इंसान ही अनजान और रहस्यमयी चीज़ों की ओर खिंचते हैं? नहीं। जिन्नों और परियों के दिलों में भी जिज्ञासा की वही आग जलती है। इंसानों की दुनिया उसे हमेशा से मोहती थी।

कुएँ से बाहर निकलकर जब उसके नाज़ुक पाँव ज़मीन से टकराए, तो उसकी पाज़ेब की मीठी झंकार ने मकान की खामोशी को तोड़ दिया। अपनी ज़ुल्फ़ों को सहेजते हुए वो धीरे-धीरे आगे बढ़ी।

मकान छोटा था, बस एक ही कमरा और कुएँ के पास एक पुराना गुसलख़ाना। मगर आज उसका मक़सद उस कमरे की दीवारें नहीं थीं, वह तो खुले आसमान में सैर करना चाहती थी। पर आज कुछ अलग था। कोई अनकहा एहसास उसके दिल में दस्तक दे रहा था।

इस वीराने में आज दिल यूं तन्हा क्यों नहीं महसूस कर रहा? लगता है कोई है… कोई पास में है… इतनी बार आई हूं, मगर ऐसा एहसास कभी नहीं हुआ,”
वह खुद से बुदबुदाई।

जैसे ही वो उस इकलौते कमरे की खिड़की के पास पहुँची, उसकी नज़र अंदर से आती हल्की सी रौशनी पर पड़ी।

इस वीरान कमरे में रौशनी? क्या सच में कोई है यहाँ?”
उसने चौंकते हुए कहा, और खिड़की की सुराख से झाँकने लगी।

जो देखा, उससे उसकी आँखें हैरत से फैल गईं।

वह झटपट दरवाज़े की ओर बढ़ी, लेकिन वह बाहर से बंद था। यह बंदिशें इंसानों के लिए होती हैं, उसके लिए नहीं। वह एक हवा के झोंके की तरह उस दरवाज़े को पार कर गई।


      अंदर का कमरा बिल्कुल सादा था। एक दरवाज़ा, एक खिड़की, एक रोशनदान  और एक पुराना पलंग। एक मेज़ पर कुछ किताबें रखी थीं, पास ही एक संदूक़ पड़ा था, जिसमें रेशमी कपड़े सलीके से तह किए हुए थे।

मैमून अभी सब कुछ देख ही रही थी कि अचानक उसके कानों में एक आवाज़ पड़ी। वह पीछे मुड़ी।

कमरे के बीचों-बीच उस पलंग पर कोई सो रहा था  गहरी नींद में, जैसे दुनिया की फ़िक्र से बेखबर। शायद करवट बदलने की वजह से वह आहट हुई थी।

वह पास गई। चिराग़ की रोशनी में उसका चेहरा साफ़ दिख रहा था  एक नौजवान, बेइंतहा हसीन, जैसे उसकी मौजूदगी से ही कमरे में रौशनी भर गई हो।

या अल्लाह! ऐसा हुस्न... वो भी एक इंसान में?”
उसके होंठों से यह अल्फ़ाज़ खुद-ब-खुद निकल पड़े।

वो उस नौजवान के पास जाकर खड़ी हो गई। उसकी उंगलियाँ खुद-ब-खुद उसकी ज़ुल्फ़ों पर फिरने लगीं, फिर धीरे से उसके रुख़सारों को छुआ। वक़्त मानो थम गया हो।

मगर तभी... वह नौजवान कसमसाया और करवट लेकर दूसरी ओर मुड़ गया। मैमून चौंकी, एक कदम पीछे हटी।

अब सवाल उठने लगे  ये कौन है? यहाँ क्यों है?

वो फिर उसके पास आई। उसके पहलू में बैठकर अपना हाथ उसके माथे पर रखा और आँखें मूंद लीं  शायद कोई राज़ जानने की कोशिश में...

 

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